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भारतीय फुटबॉल की त्रिमूर्ती, जिनकी बोलती थी तूती

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सिद्धार्थ सक्सेना, नई दिल्लीएक वक्त था जब भारतीय फुटबॉल में तीन खिलाड़ियों (चुन्नी गोस्वामी, और ) की तूती बोलती थी, लेकिन उन्हें चीयर करने के लिए कभी कोई बड़ी दर्शकों की भीड़ नहीं रही। आज यह सर्कल वन मैन क्लब है और धुंध पड़ी उम्मीदों के खिलाफ लगतार लड़ रहा है। और पीके बनर्जी के निधन के साथ ही भारतीय फुटबॉल के सुनहरे दिनों की यादें जाती रहीं। गोस्वामी, पीके बनर्जी और तुलसीदास बलराम भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम दौर की शानदार फॉरवर्ड पंक्ति का हिस्सा थे जब भारत एशिया में फुटबॉल की महाशक्ति था। 40 दिनों के भीतर पीके बनर्जी के बाद चुन्नी गोस्वामी का निधन हो चुका है, जबकि तुलसीदास जीवित हैं। सुपरस्टार चुन्नी करश्माई फुटबॉलर और मोहन बागान के आइकन रहे तो पीके बनर्जी राइट विंग के बेताज बादशाह थे। जब तुलसीराम बालाराम को फोन किया गया तो अपने दो अजीज मित्रों के जाने से दुखी यह महान फुटबॉलर यूं ही बोल पड़ा- यंग मैन, एक या दो फोन कॉल्स उन दिनों के बारे में बात करने के लिए न्याय नहीं कर पाएंगे। बता दें कि इन तीनों फुटबॉलरों में विरोधी क्लब और एक ही समय के प्रतिद्वद्वी होने के बाद भी बड़ी ही घनिष्टता थी। मित्र के निधन पर वह बोल पड़े, 'वायरस (कोरोना वायरस) फैला हुआ है, बाहर क्यों चले गए? हम आपको 5-10 वर्ष और देखना चाहते थे। आप अंदर ही रहते। हम सभी आपकी मदद करते, प्यार करते।' बालाराम तीनों में सबसे ज्यादा समझे जाने वाले और सबसे अलग थे। वह पैरों के जादूगर थे और कलकत्ता की खाटी सामाताजि-सांस्कृतिक लोकाचार में अन्य दो की ही तरह अपना प्रभाव बढ़ाते रहे। उन्होंने खुद को तराशा और ईस्ट बंगाल के महान खिलाड़ियों में शामिल हुए। 1961 सीजन के दौरान की बात करते वह कहते हैं, 'मेरे उत्तरपारा मोहल्ले में जब मैं सब्जी खरीदने जाता तो वे बगैर तौले उन्हें टोकरी में डाल दिया करते थे और कहते सर ले जाइए। यही नहीं, मैं जो पैसे देता उसे वे सब्जी वाले गिनते भी नहीं थे। ओलिंपिक में सबसे अधिक मैच खेलने का भारतीय रेकॉर्ड अपने नाम रखने वाला यह दिग्गज बताता है कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1956 में ओपनिंग मैच में सिलेक्ट नहीं होने के बाद 1963 तक कभी टीम से ड्रॉप नहीं हुए। उन्होंने रोम ओलिंपिक में हंगरी और पेरू के खिलाफ गोल दागे तो एशियन गेम्स-1962 में भारत के गोल्ड जीतने में अहम भूमिका निभाई। वर्ष उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। वह बताते हैं- पीके हमेशा गेंद पर पकड़ रखते थे और उसे पाने के लिए डिफेंडर के करीब जगह बना ही लेते थे, जबकि चुन्नी दांए पैर के जादूई फुटबॉलर थे एक बार गेंद मिलने के बाद वह शायद ही कोई उसे छुड़ा पाता था। बता दें कि ये तीनों वे खिलाड़ी थे, जिनके फैन्स में प्राण और शम्मी कपूर जैसे दिग्गज बॉलिवुड स्टार्स भी शामिल थे। करिश्माई करियर जन्म: 4 अक्टूबर, 1936 भारत डेब्यू: युगोस्लाविया, 1956 (मेलबर्न ओलिंपिक) मैच: 27 गोल: 8 (रोम ओलिंपिक में हंगरी और पेरू के खिलाफ एक-एक गोल भी शामिल) अचीवमेंट्स: गोल्ड मेडल- 1962 जकार्ता एशियन गेम्स , 4th प्लेस- 1956 मेलबर्न ओलिंपिक, रनर-अप: 1959 मेरदेका टीमें- ईस्ट बंगाल: 1957-1962, बीएनआर: 1963-64 गोल: ईस्ट बंगाल के लिए 104 गोल रेकॉर्ड: ईस्ट बंगाल के लिए फास्टेस्ट 100 गोल, 1961 में सीएफएल और आईएफए शिल्ड और गोल्ड बूट (23 गोल के साथ) ट्रोफी: ईस्ट बंगाल के लिए 9, बीएनआर के लिए दो, 4 संतोष ट्रोफी अवॉर्ड: अर्जुन अवॉर्ड, 1962

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May 13, 2020 at 05:48PM

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