नई दिल्ली आज हर कोई जानता है। एक बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में उनके नाम तमाम उपलब्धियां दर्ज हुईं। और इसके बाद कोच के रूप में उन्होंने साइना नेहवाल, पीवी सिंधु, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रणॉय जैसी कई प्रतिभाओं को निखारा और संवारा। राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच को उनकी मानसिक दृढ़ता और शांत स्वभाव के लिए भी जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह स्टार शटलर एक समय पर क्रिकेटर बनना चाहते थे। हमारे सहयोगी मुंबई मिरर के साथ बातचीत मे गोपीचंद से यह पूछा गया कि क्या शुरुआत में वह बैडमिंटन कोर्ट से ज्यादा क्रिकेट के मैदान में दिलचस्पी रखते थे? इस पर उन्होंने कहा, 'दरअसल, मेरे पिता बैंक में काम करते थे, तो बचपन में मुझे सफर करना पड़ा। ओडिशा, तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश। और इसके बाद हम हैदराबाद आ गए। यह स्टेडियम के नजदीक था। साल 1985 की बात होगी। वर्ल्ड कप जीत के बाद देश में हर कोई क्रिकेट खेलना चाहता था और मैं भी ऐसा ही था। तो, मैंने भी कुछ खिड़कियां तोड़ीं और आखिर में मेरी मां ने कहा कि यह पूरा दिन खेलता रहता है, तो इसे स्टेडियम ले जाओ।' उन्होंने आगे कहा, 'मैं क्रिकेट जॉइन करने गया लेकिन बल्लेबाजी कोच ने इनकार कर दिया। इसके बाद हम बोलिंग कोच के पास गए लेकिन उन्होंने भी न ही कहा। तो मैंने तय किया मैं सिर्फ फील्डर बनूंगा। वही जिसका काम सिर्फ गेंद उठाकर गेंदबाज को देनी होती है, लेकिन एक बार फिर मुझे एडमिशन नहीं मिला।' गोपीचंद ने कहा, 'इसके बाद स्वाभाविक रूप से टेनिस का नंबर आया। साल 1984 की बात थी। हमने टेलीविजन लिया और विम्बलडन टीवी पर दिखाया जा रहा था। हम टेनिस कोर्ट गए और बाहर आ गए। बाद में मुझे अहसास हुआ कि मेरे माता-पिता ने सोचा कि वहां बाहर बहुत सारी कार पार्क थीं। तो यह एक तरह से अमीर लोगों का खेल था तो उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला किया। अगले दरवाजे पर बैडमिंटन कोर्ट था जो खाली था, तो इस तरह मैंने बैडमिंटन जॉइन किया।' गुरु गोपी के नाम से मशहूर इस स्टार कोच ने कहा, 'मुझे खेल पसंद है। यह मेरे काम आया। मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था। खास तौर पर अपने भाई के मुकाबले तो बिलकुल नहीं। वह आईआईटी गया और बैडमिंटन में भी वह बहुत अच्छा था। उसने खेलना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि पहले ही प्रयास में उसका दाखिला आईआईटी में हो गया था। सिर्फ चार-पांच महीना पढ़ाई करने के बाद उसका 101 रैंक आया था। दूसरी ओर मेरा पैमाना क्लास में 20वें नंबर पर आना था- तो मैं खुशकिस्मत था चूंकि अगर मैं भी पढ़ाई में इतना ही अच्छा होता तो खेल मेरे लिए कभी करियर ऑप्शन नहीं बन पाता, खास तौर पर उस दौर में। हम यह नहीं सोचते थे कि हम वर्ल्ड चैंपियन बनेंगे और इसे करियर बनाएंगे। असल में 18 साल की उम्र में मेरा बैडमिंटन करियर उस समय शुरू हुआ जब मुझे टाटा स्टील में नौकरी मिल गई। तब मैंने गंभीरता से इसमें करियर बनाने के बारे में सोचा।' आखिर में उन्होंने मजाक में कहा, 'वरना आप तेलुगू परिवारों के बारे में जानते हैं आप या तो इंजीनियर बनते हैं या डॉक्टर।'
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April 19, 2020 at 04:33PM
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