4 नवंबर की तारीख ईरान और अमेरिकी संबंधों के इतिहास में एक काला दिन है। इसी दिन कुछ ऐसा हुआ था जिसने दो देशों के बीच दुश्मनी की दीवार खींच दी।4 नवंबर के दिन ईरान के छात्र आंदोलनकारियों ने अमेरिका दूतावास में घुसकर राजनयिकों और कर्मचारियों को बंधक बना लिया। इसे के नाम से जाना गया। आइए आज आपको इस घटना की पूरी कहानी बताते हैं... असल वजह ईरान बंधक संकट की वजह करीब आधी सदी पुरानी थी। सारा झगड़ा और खेल तेल का था। ईरान में तेल की खोज होने के बाद वहां पेट्रोलियम भंडारों पर इंग्लैंड और अमेरिका की कंपनियों का कब्जा हो गया था। 1951 में ईरान में चुनाव हुआ और मोहम्मद मुसद्दिक प्रधानमंत्री चुने गए। मुसद्दिक की पढ़ाई भले ही यूरोप में हुई हो लेकिन वह राष्ट्रवादी सोच के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने देश के तेल उद्योग के राष्ट्रीयकरण की योजना का ऐलान किया। मुसद्दिक का यह कदम इंग्लैंड और अमेरिका को कांटे की तरह चुभने लगा। अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने अपने रास्ते के कांटे यानी मुसद्दिक को हटाने की योजना बनाई। योजना के मुताबिक मुसद्दिक के खिलाफ बगावत भड़काकर उनका तख्ता पलटना था। उनकी जगह एक ऐसे शासक को ईरान की गद्दी पर बिठाना था जो अमेरिका और इंग्लैंड की हितों के लिए काम करे। (फोटो: साभार GettyImages) तख्तापलट और रजा शाह पहलवी का राज्याभिषेक तख्तापलट की इस योजना का कोड नाम था ऑपरेशन टीपी-अजैक्स। सीआईए और एमआई6 अपने मंसूबे को अंजाम तक पहुंचाने में सफल रहीं। मुसद्दिक का तख्तापलट हो गया और अगस्त 1953 में ईरान की गद्दी पर बैठे मोहम्मद रजा शाह पहलवी। रजा शाह पूरी तरह से अमेरिका और इंग्लैंड की कठपुतली साबित हुए। लाखों डॉलर विदेशी सहायता के बदले उन्होंने फिर से ईरान का तेल भंडार दोनों देशों को सौंप दिया। ईरान के करीब 80 फीसदी तेल भंडार पर अमेरिका और ब्रिटेन का फिर से कब्जा हो गया। ईरान के लोग अपने देश के मामले में अमेरिकी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं कर सके। उन्होंने इसका विरोध किया। जनता के आक्रोश को कुचलने के लिए पहलवी ने बर्बर तकरीका अपनाया। उनकी एक सिक्रेट पुलिस थी जिसको सवाक के नाम से जाना जाता था। सवाक ने हजारों लोगों को टॉर्चर किया और उनका मर्डर कर दिया। रजा शाह पहलवी बहुत ही क्रूर तानाशाह साबित हुए। उन्होंने पहले ही तेल भंडार अमेरिका और इंग्लैंड को सौंप दिए थे। बाद में उन्होंने अरबों डॉलर रुपये अमेरिका से हथियार खरीदने पर खर्च कर दिए। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई। इसको लेकर लोगों के अंदर आक्रोश भड़कने लगा। कट्टर इस्लामी धर्मगुरु आयातुल्लाह खुमैनी का बढ़ा प्रभाव 1970 तक ईरान के लोग शाह की सरकार से तंग आ चुके थे। आक्रोशित लोगों कट्टर इस्लामी धर्मगुरु आयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी के आंदोलन के प्रभाव में आए। उन्होंने ईरान के लोगों के हित की बात की। उन्होंने वादा किया कि पुराने निजाम को उखाड़ फेंकेंगे और ईरान के लोगों को पूरा अख्तियार मिलेगा। जुलाई 1979 में क्रांतिकारियों ने शाह को अपनी सरकार को गिराने के लिए मजबूर कर दिया। रजा शाह पहलवी डरकर मिस्र भाग गए। खुमैनी ने देश में नई सरकार बनाई। नई सरकार के गठन की बुनियाद इस्लामी सिद्धांत थे यानी ईरानी में सत्ता का इस्लामीकरण हो गया। (फोटो: साभार GettyImages) बंधक संकट की शुरुआत मध्य पूर्व एशिया में हालत खराब होने की डर से अमेरिका ने अपने विश्वसनीय सहयोगी पहलवी का साथ नहीं दिया। लेकिन अक्टूबर 1979 में अमेरिका के राष्ट्रपति कार्टर ने शाह को अमेरिका आने की अनुमति दे दी। दरअसल शाह को कैंसर था जिसके इलाज के लिए अनुमति दी गई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति का फैसला मानवीय था न कि राजनीति से प्रेरित। लेकिन ईरान के लोगों को ऐसा लगा कि अमेरिका शाह को शरण दे रहा है। 4 नवंबर, 1979 को ऊधर शाह न्यू यॉर्क पहुंचा, इधर आयातुल्लाह समर्थक आंदोलनकारी छात्र तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास में घुस गए। वहां घुसकर उन्होंने 66 लोगों को बंधक बना लिया। बंधकों में ज्यादातर राजनयिक और दूतावास के कर्मचारी शामिल थे। कुछ ही समय के अंदर बंधकों में से 13 लोगों को रिहा कर दिया गया। बाकी बच गए थे 53 लोग जिनमें से भी एक को स्वास्थ्य कारणों से छोड़ दिया। बाकी 52 लोगों को बंधक बना लिया गया जो करीब 444 दिनों तक बंधक रहे। आंदोलनकारियों की मांग थी कि अमेरिका शाह को ईरान के हवाले करे। रजा के खिलाफ ईरान के नए लीडर रूहुल्लाह खुमैनी मुकदमा चलाना चाह रहे थे। (फोटो: साभार GettyImages) अमेरिका का नाकाम ऑपरेशन ईगल क्लॉ पहले तो अमेरिका ने कूटनीति से मामले को हल करने की कोशिश की। करीब छह महीने तक अमेरिका की ओर से कोशिश की गई। अंत में 16 अप्रैल, 1980 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने सैन्य कार्रवाई की मंजूरी दी। योजना के मुताबिक अमेरिकी सेना को ईरान में खुफिया ऑपरेशन को अंजाम देकर अपने बंधकों को छुड़ाना था। इस ऑपरेशन का नाम रखा गया 'ऑपरेशन ईगल क्लॉ'। करीब 5 महीने तक अमेरिकी सेना ने ऑपरेशन की योजना बनाई थी। वायुसैनिकों को गुआम के फ्लोरिडा और एंडर्सन एयरफील्ड में प्रशिक्षण दिया गया। 24 अप्रैल को ऑपरेशन के लिए अमेरिकी सेना के विमान, सैनिक और साजोसामान ईरान पहुंचे थे। लेकिन दुर्भाग्य से यह मिशन नाकाम रहा था। ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव अमेरिका ने हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर ईरान बंधक संकट के मामले को उठाया। दुनिया भर में ईरान के इस कदम को गलत निगाहों से देखा जाने लगा और ईरान की आलोचना होने लगी। इससे ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना और अंत में बाकी के बंधकों को भी रिहा कर दिया गया। (फोटो: साभार GettyImages)
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November 03, 2019 at 06:19PM
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